बेबाक दिल की धड़कन
गर्मी की शाम थी, सूरज धीरे-धीरे डूब रहा था। अनु अपनी छत पर बैठी, आसमान की बदलती रंगत को देख रही थी। उसके हाथ में उसकी डायरी थी, जिसमें वह अपने दिल की बातें लिखती थी। अनु को लिखने का शौक बचपन से था, लेकिन उसका यह शौक हमेशा घरवालों के लिए एक "फिजूल" काम रहा। "लड़कियां सपने देखती हैं, तो घर टूटते हैं," उसकी मां अक्सर कहा करती थीं।
लेकिन अनु का दिल मानने को तैयार नहीं था। उसकी धड़कनें उसे बार-बार याद दिलाती थीं कि उसे अपनी जिंदगी को किसी और के हिसाब से नहीं, बल्कि अपनी इच्छाओं के अनुसार जीना है। उसने तय कर लिया था कि वह अपने शब्दों के जरिए खुद को साबित करेगी।
उस दिन अनु ने एक कहानी लिखनी शुरू की। यह कहानी उसकी नहीं थी, लेकिन कहीं न कहीं उसकी जिंदगी के पहलुओं से मिलती-जुलती थी। कहानी एक लड़की, प्रिया की थी, जो समाज की बेड़ियों को तोड़ने का हौसला रखती थी। प्रिया अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी और अपने दम पर कुछ बनना चाहती थी। लेकिन उसके घरवाले उसकी शादी की तैयारियों में जुटे थे। प्रिया ने उनके खिलाफ जाने की हिम्मत दिखाई, और यह हिम्मत उसकी बेबाक दिल की धड़कन से आई थी।
अनु ने कहानी खत्म की और उसे एक बड़े अखबार में भेज दिया। कुछ दिनों बाद, उसे अखबार से कॉल आया। उसकी कहानी छपने वाली थी। यह उसके लिए सपने के सच होने जैसा था।
कहानी प्रकाशित हुई, और उसे पाठकों से खूब सराहना मिली। खासकर लड़कियां, जो अपने सपनों को दबाने के लिए मजबूर थीं, अनु की कहानी से प्रेरणा लेने लगीं। अनु के शब्द अब सिर्फ पन्नों तक सीमित नहीं थे; वे उन दिलों तक पहुंच रहे थे जो बोल नहीं सकते थे।
धीरे-धीरे, अनु की कहानियां उसके शहर से बाहर भी पढ़ी जाने लगीं। एक दिन उसने अपने गांव में एक छोटी-सी लाइब्रेरी खोली, जहां लड़कियां आकर किताबें पढ़ सकती थीं, लिख सकती थीं और अपने सपनों को पंख दे सकती थीं।
अनु ने साबित कर दिया कि अगर दिल की धड़कनें बेबाक हों, तो वे हर मुश्किल को पार कर सकती हैं। उसकी जिंदगी एक मिसाल बन गई। अब उसकी हर कहानी समाज में बदलाव की एक नई इबारत लिखती है।

